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देश में शिक्षा की दिशा तय करगी नेशनल एजुकेशन पॉलिसी

new education policy 2020 in hindi
new education policy

अगस्त 2020 में मंजूर नई शिक्षा नीति देश में शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव का अगाज है। इसमें बच्चे के प्राइमरी स्कूल में एडमिशन से लेकर हायर एजुकेशन कर जॉब से जुडऩे तक काफी बदलाव किए गए हैं। लंबे समय से बदले हुए परिदृश्य में नई नीति की मांग हो रही थी।

यहां हम नई शिक्षा नीति के बारे में वह सबकुछ दे रहे हैं, जो आपको और आपके बच्चों के लिए जानना जरूरी है।

क्या हैं बड़े बदलाव

• ह्यूमन रिसोर्स एंड डेवलपमेंट मिनिस्ट्री का नाम बदलकर मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन हो गया है। नई शिक्षा नीति में जीडीपी का 6 फीसदी हिस्सा एजुकेशन सेक्टर पर खर्च किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक केंद्र और राज्य, दोनों को मिलाकर जीडीपी का 4.43 फीसदी बजट ही शिक्षा पर खर्च किया जाता था।

• देशभर के सभी एजुकेशन इंस्टीट्यूट में एडमिशन के लिए एक कॉमन एंट्रेंस एग्जाम आयोजित किया जाएगा। यह एग्जाम नेशनल टेस्टिंग एजेंसी कराएगी। हालांकि, यह ऑप्शनल होगा। सभी के लिए इस एग्जाम में शामिल होना अनिवार्य नहीं रहेगा।

• नई शिक्षा नीति के तहत आईआईटी समेत देश भर के सभी तकनीकी संस्थान होलिस्टिक अप्रोच ( समग्र दृष्टिकोण) अपनाएंगे। इंजीनियरिंग के साथ-साथ तकनीकी संस्थानों में आट्र्स और ह्यूमैनिटीज से जुड़े विषयों पर भी जोर दिया जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो तकनीकी संस्थानों में भी आट्र्स और ह्यूमैनिटीज के विषय पढ़ाए जाएंगे। देश के सभी कॉलेजों में म्यूजिक, थिएटर जैसे कला के विषयों के लिए अलग विभाग स्थापित करने पर जोर दिया जाएगा।

स्कूली शिक्षा में यह होगा बदलाव

प्री स्कूल एजुकेशन

• अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन के तहत बच्चे को बचपन में जिस देखभाल व पढ़ाई पर फोकस की आवश्यकता होती है, उसे शिक्षा के साथ जोड़ा गया है।
• इसके लिए नेशनल कोर्स और एजुकेशनल स्ट्रक्चर बनाएगा। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और बेसिक टीचर्स को स्पेशल ट्रेनिंग दी जाएगी।

• तीन से आठ वर्ष आयु के बच्चों को दो हिस्सों में बांटा है। पहले हिस्से में यानी 3 से 6 वर्ष तक बच्चा प्री स्कूल में रहेगा।

स्कूल एजुकेशन

• छह साल का बच्चा कक्षा एक में आएगा

• कक्षा 3 तक बच्चों का फाउंडेशन मजबूत बनाने पर फोकस रहेगा। 6 से 9 वर्ष के इन बच्चों के लिए बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर जोर दिया जाएगा।

• कक्षा 5 तक तक आते-आते बच्चे को भाषा और गणित के साथ उसके स्तर का सामान्य ज्ञान होगा। डिस्कवरी और इंटरेक्टिवनेस इसका आधार होगा यानी खेल-खेल में ही यह सब सिखाया जाएगा।

• कक्षा 6 से 8 तक के लिए मल्टी डिसीप्लीनरी कोर्स होंगे। यह एक्टिविटीज के जरिए पढ़ाएंगे। कक्षा 6 के बच्चों को कोडिंग सिखाएंगे। 8वीं तक के बच्चों को प्रयोग के आधार पर सिखाया जाएगा।

• कक्षा 9 से 12 तक के बच्चों के लिए मल्टी-डिसीप्लीनरी कोर्स होंगे। यदि बच्चे की रुचि संगीत में है, तो वह साइंस के साथ म्यूजिक ले सकेगा। केमेस्ट्री के साथ बेकरी, कुकिंग आदि सीख सकेगा। कक्षा 9से 12 में प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग पर जोर होगा। इससे जब बच्चा 12वीं पास कर निकलेगा तो उसके पास एक स्किल ऐसा होगी जो आगे चलकर आजीविका के रूप में काम आ सकती है।

जारी रहेंगी 10 एवं 12 बोर्ड परीक्षा, स्वरूप बदल जाएगा

नई शिक्षा नीति में नियमित और क्रिएटिव असेसमेंट की बात कही गई है। कक्षा 3 से 5 और 8 में स्कूली परीक्षाएं होंगी। इसे उपयुक्त प्राधिकरण संचालित करेगा।

कक्षा 10 एवं 12 की बोर्ड परीक्षाएं जारी रहेंगी लेकिन इनका स्वरूप बदल जाएगा। नया नेशनल असेसमेंट सेंटर मानक निर्धारक निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा।

ओपन लर्निंग का विकल्प

सभी को पढ़ाई पर बराबरी से हक मिले इसके लिए सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से वंचितों पर विशेष जोर रहेगा। इसके लिए विशेष फंड रखा जाएगा।

कक्षा 3, 5 और 8 के लिए ओपन लर्निंग का विकल्प रहेगा ताकि स्कूलों से बाहर रह रहे दो करोड़ छात्रों को फिर पढ़ाई से जोड़ा जा सके।

इसके लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी जोड़ा जाएगा। इसके साथ-साथ, कक्षा 10 और 12 के समकक्ष माध्यमिक शिक्षा कार्यक्रम, वोकेशनल कोर्सेस, वयस्क साक्षरता और लाइवलीहुड प्रोग्राम प्रस्तावित है।

कक्षा 6 से ही व्यावसायिक शिक्षा

फिलहाल शिक्षा का फोकस इस बात पर है कि कैसे लाभ हासिल किया जाए। लेकिन नए सिस्टम में पूरा जोर प्रेक्टिकल एजुकेशन पर होगा।

नई शिक्षा नीति में यह बात अहम है कि स्कूलों में कक्षा 6 से ही व्यावसायिक शिक्षा शुरू हो जाएगी। इंटर्नशिप के तहत बच्चों को पास के किसी उद्योग या संस्था में ले जाकर फस्र्ट हेंड एक्सपीरियंस दिया जा सकेगा। जो छात्र 12वीं के बाद काम-धंधा शुरू करना चाहते हैं, उन्हें अप्रेंटिस से मिले व्यावहारिक ज्ञान से फायदा मिलेगा।

कक्षा 5 तक बच्चों से मातृभाषा में शिक्षा

नई शिक्षा नीति में कम से कम कक्षा 5 तक बच्चों से बातचीत का माध्यम मातृभाषा या क्षेत्रीय, स्थानीय भाषा रहेगी। छात्रों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को विकल्प के रूप में चुनने का अवसर मिलेगा।

पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प होंगे।

कई विदेशी भाषाओं को भी माध्यमिक शिक्षा स्तर पर एक विकल्प के रूप में चुना जा सकेगा।

बधिरों के लिए स्तरीय पाठ्यक्रम

भारतीय संकेत भाषा यानी साइन लैंग्वेज को मानकीकृत किया जाएगा और बधिर छात्रों के इस्तेमाल के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय पाठ्यक्रम सामग्री विकसित की जाएंगी।

बदलेगा स्कूलों का प्रशासनिक ढांचा

स्कूलों के प्रशासनिक ढांचे को कई स्तरों पर बदला जा रहा है।

स्कूलों को परिसरों या क्लस्टरों में बांटा जा सकता है, जो गवर्नेंस की मूल इकाई होगा।

राज्य, केंद्र शासित प्रदेश और राज्य स्कूल स्टैंडड्र्स अथॉरिटी बनाएंगे। एससीईआरटी सभी संबंधित से परामर्श कर स्कूल क्वालिटी असेसमेंट फॉर्मेट बनाएगी।

शिक्षक प्रशिक्षण

एनसीईआरटी की मदद से एनसीटीई टीचर्स ट्रेनिंग के लिए नया और व्यापक नेशनल करिकुलम स्ट्रक्चर तैयार करेगा। पढ़ाने के लिए न्यूनतम योग्यता 4 साल की इंटिग्रेटेड बीएड डिग्री होगी।

हायर एजुकेशन

बढ़ाएंगे पहुंच

एनरोलमेंट बढ़ाना है। वोकेशनल के साथ-साथ हायर एजुकेशन में एनरोलमेंट 26.3 प्रतिशत-2018 से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना है। इसके लिए 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ेंगे।

एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट

अंडर-ग्रेजुएट शिक्षा 3-4 वर्ष की होगी। एक साल पर सर्टिफिकेट, 2 वर्षों पर एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों पर ग्रेजुएट डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ ग्रेजुएट। कॉलेज में एक्जिट विकल्प होंगे। एक एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट की स्थापना की जाएगी। इससे कि स्टूडेंट की अर्जित सर्टिफिकेट, एडवांस डिप्लोमा, ग्रेजुएट डिग्री जमा रहेंगे।

कॉलेजों-यूनिवर्सिटी का ढांचा बदलेगा

चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर समस्त हायर एजुकेशन के लिए हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया बनाया जाएगा। यह यूजीसी की जगह लेगा।
आईआईटी और आईआईएम के दर्जे की मल्टी-डिसीप्लीनरी एजुकेशन और रिसर्च यूनिवर्सिटी बनाई जाएगी। यह ग्लोबल स्टैंडड्र्स को फॉलो करेगी।

टॉप बॉडी के रूप में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जाएगा। इसका उद्देश्य हायर एजुकेशन में रिसर्च को एक कल्चर के रूप में विकसित करना और क्षमता बढ़ाना होगा।

यूनिवर्सिटी की परिभाषा भी बदलने वाली है। इसमें रिसर्च फोकस्ड यूनिवर्सिटी से टीचिंग-फोकस्ड यूनिवर्सिटी और डिग्री देने वाले स्वायत्त कॉलेज शामिल होंगे।

15 साल में धीर-धीरे कॉलेजों की संबद्धता खत्म की जाएगी। उन्हें धीरे-धीरे स्वायत्त बनाया जाएगा। यह कॉलेज आगे चलकर डिग्री देने वाले स्वायत्त कॉलेज बनेंगे या किसी यूनिवर्सिटी से जुड़े कॉलेज।

विदेशी यूनिवर्सिटी

टॉप ग्लोबल रैंकिंग रखने वाली यूनिवर्सिटीज या कॉलेजों को भारत में अपनी ब्रांच खोलनेे कैंपस बनाने की अनुमति दी जाएगी।

ऑनलाइन एजुकेशन

स्टूडेंट्स अब क्षेत्रीय भाषाओं में भी ऑनलाइन कोर्स कर सकेंगे। आठ प्रमुख क्षेत्रीय भाषाओं के अलावा कन्नड़, उडिय़ा और बंगाली में भी ऑनलाइन कोर्स लॉन्च किए जाएंगे। फिलहाल अधिकतर ऑनलाइन कोर्स हिंदी और इंग्लिश में ही उपलब्ध हैं।

स्कूल-कॉलेजों के ऑनलाइन एजुकेशन की जरूरतों को पूरा करने के लिए मंत्रालय में एक डिजिटल स्ट्रक्चर, डिजिटल कंटेंट और कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए समर्पित यूनिट बनाई जाएगी।

अभी समय लगेगा इस बदलाव में

• अधिकतर बदलाव 2005 में लागू नेशनल कुरिकुलम फ्रेमवर्क में भी थे। इन्हें लागू करना बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि पहले भी बदलाव की बातें बस्तों से बाहर नहीं निकल सकी थी।

• सरकार पूरी ईमानदारी से काम करे तो भी इस शिक्षा नीति को लागू होने में अभी कुछ वर्ष लगेेंगे। कितना समय लगेगा, इस बारे में कोई समय सीमा इस नीति में नहीं दी गई है।

• सीबीएसई बेशक यह पॉलिसी लागू करेगी। लेकिन देश के संविधान में शिक्षा राज्य सरकार का मसला है। अत: पर राज्यों में अपने-अपने स्तर पर फैसले लिए जाएंगे। राज्य सरकारों से उम्मीद की जाती है कि वे इसे फॉलो करेंगी। हालांकि, उनके लिए यह करना अनिवार्य नहीं है।

• ऑनलाइन एजुकेशन के लिए लोगों के पास साधन नहीं है। ऐसे में लागू करने से पहले उस पर गंभीरता से विचार करना होगा।

• समस्या है भी है कि जब तक आप स्कूली शिक्षक का तिरस्कार करते हुए कम तनख्वाह देंगे। शिक्षक मित्र बनाकर बेरोजगारी भत्ते के बराबर मानदेय देंगे, तो वो कैसी इतनी मेहनत करेगा कि शिक्षा नीति को अमली जामा पहनाया जा सके।

34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव

21वीं सदी में यह भारत की पहली शिक्षा नीति है। भारत ने 34 साल बाद अपनी शिक्षा नीति बदली है। इससे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1986 में शिक्षा नीति बनवाई थी। 2005 में कुरिकुलम फ्रेमवर्क लागू किया गया था। 1986 के बाद पहली बार यानी 34 साल बाद देश की शिक्षा नीति बदली है।

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