
आज महिलाएं कामयाबी की बुलंदियों को छू रही हैं। इन सबके बावजूद उन पर होने वाले अन्याय, प्रताड़ना, शोषण में कोई कमी नहीं आई है और कई बार तो उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी तक नहीं होती। ऐसे कई मामले देखने में आते हैं कि अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होने के कारण महिलाएं सालों तक अपने ऊपर हो रहे अत्याचार सहती रहती हैं। यहां हम आपको उन कानूनी अधिकारों के बारे में बताएंगे जो महिलाओं को हासिल हैं women’s legal rights in india ।
गौरव और स्वाभिमान भरी जिंदगी का अधिकार
महिलाओं को स्वतंत्रता, अपने पति के स्तर के जीवन, समर्पित शादीशुदा जिंदगी, शिक्षा, रोजगार तथा अन्याय के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने का अधिकार है।
समान वेतन का अधिकार
समान वेतन का अधिकार हर महिला का हक है। समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता।
मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार
मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 12 सप्ताह(तीन महीने) से बढ़ाकर 26 सप्ताह तक कर दिया गया है। 12 सप्ताह के लिए महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती है।
बाल विवाह के खिलाफ अधिकार
यदि अभिभावक अपनी नाबालिग बेटी की शादी कर देते हैं तो वह लड़की बालिग होने पर दोबारा शादी कर सकती है, क्योंकि कानूनी तौर पर नाबालिग विवाह मान्य नहीं होती है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
अगर पति या उसके ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सैक्सुअल या आर्थिक रूप से अत्याचार या शोषण करते हैं, तो वह उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकती है। घरेलू हिंसा में महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचार के लिए सीधे न्यायालय से गुहार लगा सकती है, इसके लिए वकील को लेकर जाना जरुरी नहीं है। अपनी समस्या के निदान के लिए पीड़ित महिला- वकील प्रोटेक्शन ऑफिसर और सर्विस प्रोवाइडर में से किसी एक को साथ ले जा सकती है और चाहे तो खुद ही अपना पक्ष रख सकती है।
दहेज और उत्पीडऩ पर रिपोर्ट करने का अधिकार
अगर महिला के मायके या उसके ससुराल के लोगों के बीच किसी भी तरह के दहेज का लेन-देन होता है, तो वह इसकी शिकायत कर सकती है। कानून के तहत दहेज का आदान-प्रदान और इससे जुड़े उत्पीडऩ को गैर-कानूनी व अपराध माना गया है। भारतीय दंड संहिता 498 के तहत किसी भी शादीशुदा महिला को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करना कानूनन अपराध है| अब दोषी को सजा के लिए कोर्ट में लाने या सजा पाने की अवधि बढाकर आजीवन कर दी गई है।
तलाक का अधिकार
हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत एक महिला अपने पति की सहमति के बिना भी उस स्थिति में तलाक लेने का अधिकार रखती है, जब उसके साथ पति ने बेवफाई की हो या उस महिला के साथ निर्दयता या शारीरिक और मानसिक अत्याचार आदि किया हो।
पहली पत्नी होने के वावजूद पति द्वारा दूसरी शादी करने पर, पति के सात साल तक लापता होने पर, परिणय संबंधों में संतुष्ट न कर पाने पर, मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने पर, धर्म परिवर्तन करने पर, पति को गंभीर या लाइलाज बीमारी होने पर, यदि पति ने पत्नी को त्याग दिया हो और उन्हें अलग रहते हुए एक वर्ष से अधिक समय हो चुका हो तो तलाक का अधिकार है।
पूर्व पति की संपत्ति पर अधिकार
तलाक पर महिला अपने और बच्चों के लिए पति से फाइनेंशिल मेंटेनेंस चार्ज (गुजारा भत्ता) की मांग कर सकती है, खासतौर से तब, जब उसका पति ज्यादा कमाता हो।
इसके साथ ही अगर किसी महिला का पति तलाक के बिना दूसरी शादी कर लेता है, तो उस परिस्थिति में पति की पूरी संपत्ति पर उसकी पहली पत्नी का अधिकार होता है।
महिला अपने पूर्व पति की संपत्ति पर अपना अधिकार जता सकती है। हालांकि, ये उस स्थिति में संभव है, जब उसके पति ने उसे अपनी संपत्ति से बेदखल करने संबंधित वसीयत न बनाई हो।
पति ना हो तो भी ससुराल में रहने का अधिकार
एक पत्नी को अपने ससुराल में रहने का पूरा अधिकार है। चाहे परिस्थिति किसी भी तरह की हो, चाहे उनके पति की मृत्यु ही क्यों ना हो गई हो फिर भी एक पत्नी अपने ससुराल में रह सकती है। अगर बात तलाक तक पहुंच चुकी है, तब भी एक पत्नी अपने पति के घर में तब तक रह सकती है, जब तक कि उसे रहने के लिए दूसरी उचित जगह नहीं मिल जाती। अगर महिला उसी घर में रहना चाहे, तो ये भी उसके लीगल हक में है।
बच्चे की कस्टडी का अधिकार
एक महिला के पास इस बात का पूर्ण रूप से अधिकार होता है कि वह अपने बच्चे की कस्टडी (अभिरक्षा )की मांग कर सकती है। खासतौर पर यदि बच्चा 5 साल से छोटा हो। इसके साथ ही अगर वह अपना ससुराल छोड़ कर जा रही है, ऐसी परिस्थिति में भी वह बिना किसी कानूनी ऑर्डर के अपने बच्चे को अपने साथ ले जा सकती है। इसके साथ ही एक समान कस्टडी का अधिकार प्राप्त होने के बावजूद अगर घर में विवाद की स्थिति पैदा होती है, तो महिला अपने बच्चे की कस्टडी अपने पास रख सकती है।
गर्भ समापन का अधिकार
भारतीय कानून के अनुसार, गर्भपात कराना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन एक महिला के पास अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को गिराने का अधिकार होता है। गर्भ की वजह से यदि किसी महिला के स्वास्थ्य को खतरा हो तो वह गर्भपात करा सकती है। इसके लिए उसे अपने ससुराल या अपने पति की सहमति की जरूरत नहीं है। साथ ही कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे गर्भपात के लिए बाध्य नहीं कर सकता। यदि वह ऐसा करता है तो महिला कानूनी दावा कर सकती है।
स्त्रीधन का अधिकार
एक महिला स्त्री धन को अधिकार पूर्वक और मालिकाना हक के साथ मांग सकती है। अगर उसके इस अधिकार का हनन होता है, तो ऐसी परिस्थिति में वह शिकायत दर्ज करा सकती है।
संपत्ति का अधिकार
एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या ना हो, अपने पिता की संपत्ति को पाने का बराबरी का हक रखती है। इसके अलावा विधवा बहू अपने ससुर से गुजरा भात्ता व संपत्ति में हिस्सा पाने की भी हकदार है।
माँ को भरण-पोषण का अधिकार
यदि कोई व्यक्ति सक्षम होने के बावजूद अपनी माँ, जो स्वतः अपना पोषण नहीं कर सकती, का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी नहीं लेता तो कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर सेक्शन 125 के तहत कोर्ट उसे माँ के पोषण के लिए पर्याप्त रकम देने का आदेश देता है|
लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े अधिकार
लिव इन रिलेशनशिप में महिला पार्टनर को वही दर्जा प्राप्त है, जो किसी विवाहिता को मिलता है।
लिव इन रिलेशनशिप संबंधों के दौरान यदि पार्टनर अपनी जीवनसाथी को मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना दे तो पीड़ित महिला घरेलू हिंसा कानून की सहायता ले सकती है।
लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुई संतान वैध मानी जाएगी और उसे भी संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार होगा।
पहली पत्नी के जीवित रहते हुए यदि कोई पुरुष दूसरी महिला से लिव इन रिलेशनशिप रखता है तो दूसरी पत्नी को भी गुजाराभत्ता पाने का अधिकार है।