करियरगाइडेंस4यू.कॉम - करियर आपके लिए-सही दिशा, खुशहाल जिंदगी

जनरल नॉलेज

दलबदल निरोधक कानून में सुधार की दरकार

Anti-Defection-Law
Anti-Defection-Law

दलबदल के कारण लोकतंत्र की मूल भावना से खिलवाड़ हो रहा है। विधायकों के पाला बदलने से चुनी हुई सरकार गिरने का ताजा मामला पुडुचेरी का है। इससे पहले मध्य प्रदेश, कर्नाटक में भी यह हो चुका है। हालांकि दल-बदल रोकने के लिए कानून मौजूद है। लेकिन मौजूदा दलबदल निरोधक कानून राजनीतिक शुचिता बचाने में नाकाम रहा है। मौकापरस्ती और किसी भी तरह सत्ता की मलाई खाने वाली राजनीति आज सिर चढ़कर बोल रही है। यह मतदाताओं के साथ छल है। अब समय आ गया है कि दलबदल निरोधक कानून की मरम्मत कर ली जाए।

सभी हैं दलबदल के जले

हाल के वर्षों में दलबदल रूपी ठगी का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को मिला है। आज जब दलबदल की मार कांग्रेस पर पड़ रही है और भाजपा ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर रही है, तो उसे नहीं भूलना चाहिए कि महाराष्ट्र में कैसे 25 साल पुराने मित्र दल शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा और चुनाव के बाद पाला बदल लिया। वह भले ही मध्यप्रदेश, कर्नाटक, गोवा, मणिपुर, अरूणाचल प्रदेश और अब पुडुचेरी में अपनी सरकार बना ले, लेकिन ऐसा नहीं माना जा सकता है कि जैसे दिन आज कांग्रेस को देखने पड़ रहे हैं, वैसी ही स्थति कल को भाजपा को नहीं झेलनी पड़ेगी। भाजपा के अलावा कांग्रेस और आरजेडी को भी नहीं भूलना चाहिए कि कैसे नीतीश कुमार ने जनादेश की अनदेखी कर उनको गच्चा दिया था।

जो बोया, वही काट रही कांग्रेस

पिछले साल मार्च 2020 में कांग्रेस को मध्यप्रदेश में झटका लगा था। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायकों ने बगावत कर दी और कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था। राजस्थान में तो हालात जैसे-तैसे कंट्रोल में आ गए लेकिन अब कांग्रेस को पुडुचेरी में फिर झटका मिला है। सत्ता हथियाने के खेल में जैसे आज बीजेपी शहनशाह दिख रही है, आया राम, गया राम के खेल की कांग्रेस भी मामूली महारथी नहीं रही है। 1967 से लेकर 1971 तक के चार वर्षों में सत्ता के घोड़ों की जबरदस्त सौदेबाजी हुई। 1967 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने देश 16 में से 8 राज्यों में बहुमत खो दिया था। सात राज्य में कांग्रेस की सरकारें भी नहीं बन सकीं लेकिन 1967 से लेकर 1971 में बांग्लादेश का जन्म होने तक, चार साल में 142 सांसदों और 1969 विधायकों ने दलबदल किया। सौदेबाजी के रूप में इन दलबदलुओं में से 212 को मंत्री पद मिला।

1985 में बना था दल-बदल विरोधी कानून

राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 1985 में 52वां संविधान संशोधन कर 10वीं अनुसूची जोड़ी थी। इसके तहत जनप्रतिनिधि को दल-बदल पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है। कानून के मुताबिक यदि एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है, कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है, किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट यानी क्रॉस वोटिंग की जाती है या कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है यानी वॉक आउट करता है तो वह दलबदल का दोषी होगा। दल-बदल निरोधक कानून आने के बाद कुछ हद तक तो लगाम लगी लेकिन अब लग रहा है कि दल बदल कानून काफी नहीं है।

कानूनी खामियों को दूर किया जाना जरूरी

पहले गोवा, मणिपुर, झारखंड जैसे छोटे राज्यो में दलबदल हो रहा था लेकिन अब बड़े-बड़े राज्यों जैसे मध्यप्रदेश, में भी चुनाव का मतलब नहीं रहा। जनता किसी पार्टी को चुनती हैं, फिर उस पार्टी के लोगों को दूसरी पार्टी अपने पैसे या सत्ता इस्तेमाल कर अपनी ओर आकर्षित कर लेती है और वे उस पार्टी से टूटकर दूसरी पार्टी में चल जाते हैं। अब किसी पार्टी को तोडऩे के बजाय सरकारों के बहुमत को तोड़ा जाता है। सौदा तय हो जाने के बाद विधायक अपनी सदस्यता से इस्तीफा देकर नई पार्टी में पहुंच जाते हैं। फिर नई पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर मंत्री बन जाते है। इस तरीके की वजह से दलबदलुओं का दाम बहुत ऊंचा हो गया है। अब यदि एक विधायक को पांच-पांच करोड़ या सांसद को 25-25 करोड़ रुपए में भी खऱीदना पड़े तो महज कुछ सौ करोड़ रुपए में किसी भी सरकार को गिराया जा सकता है। दलबदल क़ानून की ख़ामियों की वजह से औद्योगिक घराने राजनीतिक दलों को मुट्ठी में रखते हैं। लिहाजा, यदि लोकतंत्र की लाज रखनी है, कानूनी खामियों को फौरन दूर किया जाना चाहिए।

प्रयास हुए पर कामयाब नहीं

2002 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ़ जस्टिस वेंकटचलय्या की अगुवाई वाले संविधान समीक्षा आयोग की उस सिफ़ारिश को नहीं माना गया जिसमें कहा था कि दलबदल करने वाले विधायकों या सांसदों पर उनके बाक़ी बचे कार्यकाल में दोबारा चुनाव लडऩे पर रोक लगा दी जानी चाहिए। दलबदल से सम्बन्धित उन सिफ़ारिशों को भी नहीं अपनाया गया जो समय-समय पर दिनेश गोस्वामी कमेटी, विधि आयोग और चुनाव आयोग ने की।

• राजेश जैन

(लेखक एजुकेशन पोर्टल careerguidance4u.com के संपादक हैं।)

Related posts
इंटरेस्टिंगजनरलजनरल नॉलेजन्यूज4यूप्रशासनिक सेवासिविल सर्विस

ट्रम्प के रवैए से लोकतंत्र को झटका, मजबूत होंगी विस्तारवादी ताकतें

राजेश जैन अमेरिका चाहता है कि यूक्रेन या तो अपनी आधी खनिज संपदा उसे देने का सौदा करे या अपनी जमीन का करीब पांचवां भाग छोड़ दे, वहीं ‘नाटो’ का सदस्य बनने या किसी दूसरी तरह की सुरक्षा गारंटी हासिल करने की बात तो भूल ही जाए। फरवरी के अंतिम…
इंटरनेशनलइंटरेस्टिंगजनरल नॉलेज

क्या ताइवान पर हमला करने वाला है चीन !

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नए साल के भाषण में एक बार फिर कहा है कि कोई भी ताकत ताइवान को चीन के साथ मिलाने से नहीं रोक सकती है। इससे पहले भी गत वर्ष के अंत में, ताइवान के आसपास चीनी लड़ाकू जहाज और और विमानों की खासी हलचल…
इंटरनेशनलजनरलजनरल नॉलेजनेशनल

दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बनने के मायने

संयुक्त राष्ट्र के नए आंकड़ों के मुताबिक भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। अब भारत की जनसंख्या 142 करोड़ 86 लाख है। वहीं चीन की जनसंख्या 142 करोड़ 57 लाख है यानी हमारी आबादी चीन से करीब 30 लाख ज्यादा है। यह सब अचानक नहीं…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *