
राजस्थान के इंजीनियरिंग कॉलेज नए पाठ्यक्रमों से दूर हैं। ऐसे में तकनीकी संस्थानों में औद्योगिक मांग के अनुसार विद्यार्थी तैयार नहीं हो रहे हैं और तीस फीसदी विद्यार्थियों को भी मुश्किल से रोजगार मिल रहा है।
प्रदेश में सरकारी और निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में करीब 50 हजार सीटें हैं। विद्यार्थी इन कॉलेज में जेईई मेन्स के जरिए प्रवेश लेते हैं। ज्यादातर इंजीनियरिंग कॉलेज नए कोर्स के मामलों में केरल, तमिलनाडु, आंधप्रदेश और कर्नाटक के विभिन्न कॉलेज से पिछड़े हैं। वहां जहां नैनो टेक्नोलॉजी, सोलर एनर्जी, एन्वायरमेंट इन्फॉरमेटिक्स, कॉमर्शियल प्रेक्टिस, कम्प्यूटर एप्लीकेशन एंड बिजनेस मैनेजमेंट, इंस्ट्रूमेंट टेक्नोलॉजी, एप्लाइड इलेक्ट्रानिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, कम्प्यूटर इंजीनियरिंग टूल एंड डाई, फिशरीज टेक्नोलॉजी, प्रोस्थेटिक्स एंड ऑर्थेटिक्स, स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग, इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग, कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी, मेटेलर्जिकल इंजीनियरिंग, सैंडविच मेकेनिक्स, पॉलीमर टेक्नोलॉजी, ग्रीन केमिस्ट्री एन्ड इंजीनियरिंग जैसे कोर्स हैं जबकि राजस्थान में सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स इंस्ट्रूमेंटेशन कंट्रोल, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन, कम्प्यूटर, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, पेट्रोलियम इंजीनियरिंग, पेट्रो केमिकल, प्रोडक्शन इंडस्ट्री जैसे कोर्स ही अब भी चल रहे हैं।
दरअसल राजस्थान में तकनीकी शिक्षा विभाग की इंजीनियरिंग कॉलेज में नई ब्रांच और कोर्स खोलने में रुचि कम है। विद्यार्थियों को चिरपरिचित ब्रांच और कोर्स में ही दाखिलों का विकल्प मिलता है। 1996-97 और उसके बाद अजमेर सहित बीकानेर, झालावाड़, बारां, भरतपुर, बांसवाड़ा और अन्य जगह सरकारी और निजी कॉलेज खुले हैं। लेकिन राज्य के कई नए इंजीनियरिंग कॉलेज के न एक्रिडेशन हैं न इनमें प्रोफेसर हैं। अधिकांश कॉलेज में रीडर और लेक्चरर ही विद्यार्थियों को इंजीनियर बना रहे है जबकि उच्च और तकनीकी विश्वविद्यालयों के लिए नैक और नैब (नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रिडेशन) से ग्रेडिंग जरूरी है। हालांकि 2020 से नैब ने सभी संस्थाओं के लिए ग्रेडिंग लेना अनिवार्य कर दिया है, देखने की बात है कि नियमों की पालना और सुधार की दिशा में क्या कदम उठाए जाते हैं।